अशोक सिंह की रिपोर्ट
*आनंद के मूर्तिमान स्वरूप का नाम कृष्ण है – आचार्य ज्ञान चंद्र द्विवेदी*।
मेंहनगर (आजमगढ़)।
मेहनगर के गीता मैरिज हॉल में अयोध्या से पधारे आचार्य ज्ञानचंद द्विवेदी ने श्रीविष्णु पुराण कथा के पांचवें दिन भगवान की बाल लीलाओं का वर्णन सुनाया गया
नंद बाबा ने पुत्र के उत्पन्न होने की बात सुनी तो उनका मन उदारता से करुणा से भर गया सबसे पहले उन्होंने स्नान करके सुंदर सुंदर वस्त्र आभूषण धारण किए वैदिक विद्वानों को बुलाकर स्वस्तिवाचन पूर्वक 16 संस्कारों के अंतर्गत जात कर्म संस्कार संपादित किया इसके बाद लाखों लाख गायों का दान किया
क्योंकि काल से अपवित्र भूमि,
स्नान से शरीर प्रक्षालन से वस्त्र संस्कार से गर्भ तपस्या से इंद्रियां यज्ञ से ब्राह्मण दान से धन संतोष से मन आत्मज्ञान से आत्मा की शुद्धि होती हैं
भगवान श्री कृष्ण लीला में सबसे पहले पूतना का उद्धार करते हैं।
भगवान राम ने भी सबसे पहले ताड़का का उद्धार किया था अंतर इतना है कि कृष्ण ने आंख बंद करके क्योंकि वह योगी हैं
भगवान राम ने आंख खोलकर ताड़का का उद्धार किया क्योंकि वह मर्यादा पुरुषोत्तम हैं
आध्यात्मिक रूप से पूतना अविद्या (माया) है ।
शकटासुर जड़वाद, वकासुर दंभ,अघासुर पाप धेनुकासुर देहाध्यास, कालियानाग भोगासक्तिरुप विष है।
यह सब बातें ध्यान देने योग्य हैं
यह केवल मनगढ़ंत कहानियां नहीं है भौतिक रूप से ऐतिहासिक सत्य हैं आधिभौतिक रूप से देवासुर संग्राम के दैत्य हैं आध्यात्मिक रूप से जीवन में रहने वाले विकार हैं।
भगवान को भगवान मानना जो संपूर्ण सृष्टि का स्वामी है उसी को चोर ही कहना कितना असंगत है। चोर तो वह है जो भगवान की संपत्ति को अपनी संपत्ति मानकर भगवान की संतानों को ही उससे वंचित रखते हैं फिर भी भगवान का प्रेम है कि भगवान बलात् छीनते नहीं चोर बनकर चोर कहाकर अपने भक्तों को प्रसन्न करने के लिए चोरी लीला करते हैं।कितना अच्छा होगा वह चोर जिसके चोर बन के आने से चोरी करने से मालिक और उसके घर वालों को आनंद मिलता होगा।
भगवान की बाल लीला में जितनी सरलता से इन सब बातों को पिरोया गया है वह सुनते ही बनता है।
कुशल उपदेशक वही है जो गंभीर से गंभीर चिंतन को सरलतम रूप से जनसाधारण के जीवन में उतार दे।
भगवान श्री कृष्ण की लीलाएं ऐसे ही हैं
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- अभिषेक मिश्रा (सदाशिव मिश्रा ) , प्रधान सम्पादक , मो. 7317718183
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